पोषण मेरा हथियार बना: एक दिव्यांग महिला न्यूट्रिशनिस्ट की प्रेरणादायक कहानी

नमस्ते, मैं न्यूट्रिशनिस्ट शिवानी हूँ — एक ऐसी महिला, जिसने जीवन की सबसे कठिन चुनौतियों को अपनी सबसे बड़ी प्रेरणा में बदला। मेरी पहचान सिर्फ मेरी शारीरिक स्थिति से नहीं, बल्कि मेरे ज्ञान, मेरी सेवा और मेरे संकल्प से है। इस लेख में मैं न सिर्फ अपनी यात्रा साझा कर रही हूँ, बल्कि यह भी बता रही हूँ कि कैसे पोषण ने मेरी ज़िंदगी को बदला और कैसे अब मैं दूसरों की ज़िंदगियाँ बदल रही हूँ — एक सलाह, एक भोजन योजना और एक उम्मीद के साथ।

Nutritionist shivani

7/28/20251 min read

जब पोषण की कमी ने जीवन को और कठिन बना दिया

            मैं एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार में पैदा हुई, जहाँ सपनों को पंख देने की ज़रूरत थी, लेकिन शरीर की सीमाएं और समाज की सोच उन्हें बार-बार काटती रही। मेरा स्कूल आठवीं तक था, और जैसे ही मैंने नवीं में प्रवेश लेना चाहा, एक नई चुनौती सामने थी — नई जगह, नई लड़कियाँ, और एक अलग-थलग महसूस करने वाला माहौल।

           नए स्कूल में विज्ञान वर्ग की सभी कक्षाएं पहली मंज़िल पर थीं और उस फ्लोर पर वॉशरूम नहीं था। सीढ़ियाँ मेरी सबसे बड़ी परीक्षा बन गई थीं। सुबह एक बार चढ़ जाती तो शाम तक नीचे नहीं उतर सकती थी। ऐसे में पानी पीना भी एक डर बन गया था — कहीं वॉशरूम जाना पड़ा तो? धीरे-धीरे मैंने कम पानी पीना शुरू किया और इस असुविधा को अपनी आदत बना लिया। लेकिन इसका असर मेरे शरीर और मन दोनों पर पड़ा।

            लंच टाइम में बाकी लड़कियाँ ग्राउंड में खेलती थीं, मस्ती करती थीं — और मैं खिड़की से उन्हें निहारती रहती थी। दोस्त बनाना चाहा, पर मेरी शारीरिक स्थिति को देखकर लोग थोड़ा दया निभाते पर साथ नहीं। धीरे-धीरे अकेलापन मेरी आदत बन गया।

           अर्धवार्षिक परीक्षा से पहले मुझे चिकनपॉक्स हो गया और मै किसी तरह परीक्षा दे पाई। अंक कम आए लेकिन किसी तरह पास हो गई। इसके बाद किशोरावस्था का दौर आया — शरीर में बदलाव, मासिक धर्म, और लगातार थकावट। मैं पहले से ज़्यादा कमज़ोर होती गई। स्कूल जाना और भी मुश्किल हो गया।

जब सीढ़ियाँ पहाड़ बन गईं

           दसवीं में मैंने देखा कि अब ट्रॉली से उतरकर ग्राउंड पार करना और फिर सीढ़ियाँ चढ़ना मेरे लिए असहनीय होता जा रहा है। मैं ग्लूकोज पानी पीकर थोड़ी सीढ़ियाँ चढ़ती, फिर आराम करती और फिर चढ़ती। कई बार मेरे चाचा साथ होते और सहारा देते। लेकिन शिक्षकों ने कहा कि तुम्हें रोज़ आने की ज़रूरत नहीं, ज़रूरत पड़ी तो दीदी से कहलवा देंगे। अब मैं सप्ताह में दो बार स्कूल जाती थी। बाक़ी समय घर पर पढ़ाई करती, और घर के व्यवसाय में भी हाथ बंटाने लगी थी। हिसाब-किताब में मेरी रुचि और पकड़ बहुत अच्छी थी। बीकॉम करने की इच्छा और भी प्रबल हो गई थी।

            एक ट्यूशन टीचर घर आने लगे थे जो सिर्फ गणित पढ़ाते थे, लेकिन उनके पढ़ाने का तरीका मेरी दीदी को सही नहीं लगता था। वो कहते थे कि किताब में गलत लिखा है। मेरे पास पुरानी किताबें थीं और मैं स्कूल भी कम जाती थी, इसलिए मैंने उन पर विश्वास कर लिया। जिसका भी खामियाजा भुगतना पड़ा । सब कहते — बस पढ़ाई करो, यही तुम्हारा भविष्य है। और मैं दिन-रात पढ़ाई में जुट गई।

मेरी सबसे कठिन परीक्षा: बुआ की शादी का हादसा

            मेरी बुआ की शादी थी। पूरा घर व्यस्त था। शादी गेस्ट हाउस से थी और मुझे ऊपर के चेंजिंग रूम में तैयार होना था। मैंने जैसे ही दरवाज़े पर कुंडी लगाई, मेरा पैर फिसल गया और मैं फर्श पर गिर पड़ी। उठने की हर कोशिश नाकाम रही। कोई पास नहीं था। नीचे बारात आ रही थी, और मैं ऊपर अकेली, ज़मीन पर गिरी हुई। दरवाज़े तक हाथ नहीं पहुंच रहा था। कैलीपर की वजह से एक पैर सीधा था और उठना और भी मुश्किल हो गया।

            करीब 30 से 40 मिनट से मैं उठने की लगातार कोशिश करती रही अब तो शरीर भी साथ नहीं दे रहा था फिर भी— न आवाज़ लगाई, न दरवाज़ा पीटा। क्योंकि मैं शादी के इस खुशी भरे माहौल को बिगाड़ना नहीं चाहती थी। साथ ही, एक लड़की होने के नाते अपनी इस स्थिति को सबसे छिपाना चाहती थी। मानसिक तनाव, शर्म और डर ने मुझे भीतर से हिला दिया।

            थोड़ी देर बाद जब पापा की आहट सुनी, तो न जाने कहाँ से ताकत आ गई और मैं किसी तरह उठकर दरवाज़ा खोल पाई। पापा ने पूछा — "क्या हुआ?" मैंने मुस्कुरा कर कहा — "बस प्यास लगी थी।"

            खुद को संभालने की बहुत कोशिश की पर मैं स्टेज के सामने बैठी और बहुत रोई — बुआ से भावनात्मक लगाव था उनके शादी की खुशी भी थी। लेकिन भीतर से मैं खुद को फिर से जोड़ने की कोशिश कर रही थी। तभी मैंने खुद से एक वादा किया —

             "अब गिरूँगी भी तो खुद उठूँगी। अब से हर दर्द को ताक़त में बदलूंगी।"

यहीं से शुरू हुआ बदलाव…

           उस दिन के बाद मैंने अपने शरीर की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करना बंद किया। मैंने जाना कि पोषण सिर्फ भोजन नहीं, आत्मसम्मान भी है। मैंने खुद को भोजन से, ज्ञान से, शिक्षा से, और आत्मविश्वास से मजबूत बनाना शुरू किया। मैंने MSc किया, न्यूट्रिशन मे डिप्लोमा और सर्टिफिकेशन कोर्सेस किए — लेकिन सबसे बड़ी डिग्री मैंने खुद के लिए हासिल की — "स्वीकृति और साहस की डिग्री।"

अब मैं न्यूट्रिशनिस्ट शिवानी हूँ — आपकी स्वास्थ्य साथी

            आज मैं न केवल अपनी बल्कि अनगिनत महिलाओं, किशोरियों और दिव्यांग जनों की ज़िंदगी बदल रही हूँ। मेरा लक्ष्य सिर्फ डाइट चार्ट देना नहीं है, बल्कि लोगों को उनके शरीर की ज़रूरतों को समझने में मदद करना है। मैं हर क्लाइंट की स्थिति को समझकर, उनकी दिनचर्या, पसंद, परंपरा, बजट और शारीरिक स्थिति के अनुसार योजनाएं बनाती हूँ।

मेरी विशेषज्ञता:

  • किशोरियों के लिए मासिक धर्म पोषण सलाह

  • आयरन, कैल्शियम और प्रोटीन की कमी को सुधारना

  • दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अनुकूलित पोषण योजना

  • मातृत्व और रजोनिवृत्ति के दौर में पोषण

  • वर्किंग प्रोफेशनल्स और होममेकर महिलाओं के लिए आसान पोषण समाधान

मेरी सेवाएँ:

            ✅ व्यक्तिगत पोषण परामर्श (Online / Offline) ✅ फैमिली न्यूट्रिशन काउंसलिंग ✅ स्पेशल-नीड्स डाइट गाइडेंस ✅ स्कूली बच्चों और किशोरों के लिए हेल्थ प्लान ✅ थायरॉइड, मोटापा, एनीमिया, PCOS के लिए समाधान

मेरी सीख — और आपकी प्रेरणा

  • पोषण सिर्फ शरीर नहीं, आत्मा को भी पोषण देता है।

  • सही जानकारी, सही समय पर मिल जाए, तो ज़िंदगी बदल जाती है।

  • स्वास्थ्य कोई लक्ज़री नहीं, यह हमारा अधिकार है।

  • जो हम झेलते हैं, वही हमें मजबूत बनाता है। और जो हम सीखते हैं, वही हमें दूसरों का मार्गदर्शक बनाता है।

एक अंतिम संदेश:

            अगर आप थकते हैं, टूटते हैं, निराश हैं — तो एक बार खुद से पूछिए: क्या मेरा शरीर वो पोषण पा रहा है जिसकी उसे ज़रूरत है?

              अगर नहीं, तो मैं यहाँ हूँ — आपकी स्वास्थ्य साथी, आपकी मार्गदर्शक, आपकी Nutritionist Shivani।

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            ✨ आइए — खुद को पोषण दें, खुद को अपनाएं, और खुद को सशक्त बनाएं।