Consumer Rights and Disability: Our Voice is Our Change

उपभोक्ता अधिकार और विकलांगता: हमारी आवाज़ ही हमारा बदलाव है अगर विकलांगजन को एक सशक्त उपभोक्ता समूह बना दिया जाए, तो उद्यमी हमारी सुनेंगे। उद्यमियों की सुनवाई सरकार तक पहुँचेगी और तब विकलांग व्यक्ति न केवल वोटर होंगे, बल्कि मार्केट और लोकतंत्र – दोनों के गेम चेंजर बन जाएंगे।

Nutritionist shivani

9/20/20251 min read

उपभोक्ता अधिकार और विकलांगता: हमारी आवाज़ ही हमारा बदलाव है

कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे अनुभव देती है जो हमारी सोच बदल देते हैं। ये अनुभव हमें न सिर्फ़ मजबूत बनाते हैं बल्कि समाज और व्यवस्था की खामियों को भी उजागर करते हैं।आज मैं अपनी एक ऐसी कहानी साझा करना चाहती हूँ जिसने मुझे न सिर्फ़ उपभोक्ता अधिकारों के महत्व को समझाया, बल्कि यह भी बताया कि अगर हम विकलांग उपभोक्ता एकजुट होकर खड़े हों तो बदलाव निश्चित है।

उपभोक्ता अधिकार की ताक़त: मेरा माइक्रोवेव अनुभव

कुछ साल पहले, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हुए, घर में खाना बनाने को आसान करने के लिए हमने सोचा कि एक साधारण माइक्रोवेव खरीदेंगे – जिसकी कीमत लगभग ₹5,000–₹6,000 हो। लेकिन मेरे पापा दुकान पर गए और चारकोल फ़ंक्शन वाला एक एडवांस्ड LG माइक्रोवेव ₹17,000 में खरीद लाए।

शुरुआत में सब सही था, लेकिन 5–6 महीने बाद उसमें दिक़्क़तें शुरू हो गईं। वो गारंटी में था, इसलिए हमने सर्विस सेंटर से रिपेयर कराया। पर कुछ ही दिनों में नई-नई समस्याएँ आने लगीं। जब-जब शिकायत की, हर बार एक ही जवाब मिलता – “कल आ जाएंगे… अभी पार्ट उपलब्ध नहीं है… थोड़ा इंतज़ार कीजिए।”

दो महीने बीत गए, पर समाधान नहीं मिला। और अंत में एक सर्विस इंजीनियर ने कहा: “मैडम, इतनी बड़ी कंपनी एक ग्राहक के लिए क्या ही करेगी! शिकायत करके भी कोई फ़ायदा नहीं होगा।”

ये सुनकर दिल टूट गया। क्या एक ग्राहक की कोई अहमियत नहीं होती?

जब मैंने आवाज़ उठाई

निराश होने के बजाय मैंने एक ईमेल लिखा – सीधे कंपनी के इंटरनेशनल हेड ऑफिस को। उस ईमेल में मैंने साफ़ कहा:- हम LG के वफादार ग्राहक हैं। हमारे घर में टीवी, फ़्रिज, वॉशिंग मशीन समेत दर्जनों LG प्रोडक्ट हैं। जब भी परिवार में शादी होती है, हम दहेज में भी LG के प्रोडक्ट देते हैं। यानी हम सिर्फ़ एक ग्राहक नहीं, बल्कि LG के लिए दर्जनों नए ग्राहकों का नेटवर्क हैं। मैंने चेतावनी दी “अगर आपने मेरी शिकायत को हल्के में लिया तो आपके लिए ये सिर्फ़ एक कस्टमर लॉस नहीं होगा। इससे 20–30 और लोग LG से दूर हो जाएंगे।” नतीजा कुछ ही दिनों में कार्रवाई हुई। हमें नया माइक्रोवेव ऑफ़र किया गया।

कंपनी ने कहा – “आप बड़ा वाला ओवन बदल सकते हैं या अपनी पासंद केा केोई अन्य मॉडल ले सकते हैं और पैसे का अंतर हम वापस कर देंगे।” उन्होंने ससम्मान हमारे घर माइक्रोवेव पहुंचया, पुराना वाला वापस लेकर गए

उस दिन मुझे पहली बार एहसास हुआ कि –

👉 एक जागरूक उपभोक्ता अकेला नहीं होता।

👉 उसके पीछे एक पूरा नेटवर्क होता है।

👉 और जब हम अपनी आवाज़ उठाते हैं, तो बड़ी-बड़ी कंपनियाँ भी झुकने पर मजबूर हो जाती हैं।

विकलांग उपभोक्ताओं की हकीकत-

अब सोचिए, अगर एक साधारण उपभोक्ता की आवाज़ इतनी ताक़तवर हो सकती है, तो विकलांग उपभोक्ताओं (PwDs) की आवाज़ कितनी मायने रखती होगी?

WHO की रिपोर्ट कहती है कि –हर 7 में से 1 व्यक्ति किसी न किसी विकलांगता के साथ जी रहा है। यानि भारत में करोड़ों लोग। लेकिन क्या हमारे लिए बाज़ार तैयार है? क्या हमारी बुनियादी ज़रूरतों को ध्यान में रखा जाता है?

झकझोर देने वाला अनुभव

कुछ महीने पहले मैं और मेरे पति एक शोरूम गए। प्रवेश करने के लिए 10 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ीं। और फिर जो सामान हमें चाहिए था उसके लिए 30 और सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ीं। यह मेरे लिए बेहद कष्टदायक था। लेकिन असली दर्द तब हुआ जब मैंने देखा –बाहर एक युवक व्हीलचेयर पर खड़ा था। दो छोटी सीढ़ियाँ भी उसके लिए दीवार बन गई थीं। उसकी आँखों में निराशा और लाचारी साफ़ दिख रही थी। मेरा दिल टूट गया। मैंने सोचा –

“हमारी व्यवस्थाएँ इतनी बुनियादी ज़रूरतों को क्यों नज़रअंदाज़ करती हैं?”

उपभोक्ता के रूप में विकलांगों की ताक़त

हम सिर्फ़ ज़रूरतमंद नहीं हैं। हम भी आर्थिक रूप से सशक्त उपभोक्ता हैं।

👉 भारत में विकलांग उपभोक्ताओं की ख़रीदारी क्षमता ₹9 लाख करोड़ से ज्यादा है। इतने पैसे से पूरा शिमला शहर खरीदा जा सकता है! लेकिन सच्चाई यह है कि –सिर्फ़ 5% दुकानें ही व्हीलचेयर-फ्रेंडली हैं। 70% एटीएम मशीनें दृष्टिबाधितों के लिए उपयोगी नहीं हैं। क्या यह अन्याय नहीं है?

छोटे बदलाव, बड़े असर

कुछ उदाहरण दिल को सुकून देते हैं:-

  • जयपुर में एक संस्था सिर्फ़ ₹5,000 में 3D प्रिंटेड कृत्रिम पैर बना रही है।

  • टाइटन कंपनी ने ब्रेल वॉच बनाई है।

  • ICICI बैंक ने “बोलने वाले एटीएम” लॉन्च किए।

    ये छोटी पहलें लाखों ज़िंदगियाँ बदल रही हैं।

असली शक्ति: मार्केट और वोटिंग पावर में है

अब सवाल ये है कि हमारी आवाज़ कौन सुनेगा? सच्चाई यह है कि राजनीतिक नेता हमारी कम सुनते हैं। वजह साफ है हमारी वोटिंग टर्नआउट अक्सर कम होती है क्योंकि कई PwDs मतदान केंद्र तक पहुँच ही नहीं पाते। नतीजतन, नेताओं के लिए हम एक “कमज़ोर वोट बैंक” बन जाते हैं। लेकिन इसका समाधान है — उपभोक्ता शक्ति (Consumer Power)।

👉 जब एक बड़ा उपभोक्ता वर्ग किसी चीज़ की डिमांड करता है, तो मार्केट उसके अनुरूप ढलता है। और जब मार्केट बदलता है, तो सरकार को भी सुनना पड़ता है। आज हम देख ही रहे हैं कि बड़े उद्यमी अपनी आवाज़ से सरकार को प्रभावित कर लेते हैं। तो क्यों न हम PwDs एक “Massive Consumer Base” के रूप में खड़े हों?

अगर PwDs को एक सशक्त उपभोक्ता समूह बना दिया जाए, तो उद्यमी हमारी सुनेंगे। उद्यमियों की सुनवाई सरकार तक पहुँचेगी और तब विकलांग व्यक्ति न केवल वोटर होंगे, बल्कि मार्केट और लोकतंत्र – दोनों के गेम चेंजर बन जाएंगे।

अगर हम उपभोक्ता होकर चुप रहेंगे तो कंपनियाँ और व्यवस्थाएँ हमें नज़रअंदाज़ करती रहेंगी। लेकिन अगर हम जागरूक होकर खड़े होंगे तो न सिर्फ़ कंपनियाँ बल्कि पूरा समाज बदलने पर मजबूर होगा।

हमें क्या करना होगा?

1. जागरूकता फैलाएँ – जब किसी दुकान या संस्थान में रैंप, ब्रेल साइन या एक्सेसिबल टॉयलेट न हो तो सवाल उठाएँ।

2. समावेशी ब्रांड्स चुनें – जो विकलांगों को ध्यान में रखकर उत्पाद बनाते हैं।

3. स्वयं बदलाव लाएँ – अगर आपके पास दुकान/ऑफ़िस है, तो रैंप बनवाएँ, वेबसाइट पर ऑडियो विकल्प दें।

4. कानूनी अधिकारों का उपयोग करें – RPWD Act 2016 के तहत अपने हक़ की मांग करें।

5. आर्थिक आत्मनिर्भरता पर काम करें – शिक्षा, स्किल और असिस्टिव टेक्नोलॉजी के साथ आत्मनिर्भर बनें।

6. सामाजिक और मानसिक सशक्तिकरण- सपोर्ट ग्रुप्स से जुड़ना (NCPEDP, दिव्यांगजन समितियां), नियमित योगा, फिजियोथेरेपी, पैरा-स्पोर्ट्स , काउंसलिंग खान पान और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दे

5. राजनीतिक भागीदारी - मतदान में सक्रिय भागीदारी करे

जैसा कि अमर्त्य सेन ने कहा है: “किसी देश की तरक्की का पैमाना उसके सबसे कमजोर लोगों की हालत है।” PwDs कैसे “दिव्यांग” से “दिव्य शक्ति” बन सकते हैं

अंतिम संदेश

"हमारी अक्षमताएं हमें परिभाषित नहीं करतीं, हमारी जिजीविषा करती है।"अब समय आ गया है कि विकलांग व्यक्ति खुद को सिर्फ लाभार्थी या पीड़ित न मानें, बल्कि सशक्त उपभोक्ता और निर्णायक शक्ति के रूप में देखें।

आइए मिलकर ऐसा भारत बनाएं — जहाँ हर दुकान, हर एटीएम, हर ऑफिस और हर गली सुगम्य हो। जहाँ हर व्यक्ति खुद को सम्मानित और सक्षम महसूस करे और जहाँ विकलांग जन “दिव्यांग” नहीं बल्कि सचमुच “दिव्य शक्ति” कहलाएँ। क्योंकि बदलाव बाहर से नहीं, हमारी आवाज़ से शुरू होता है।